दूसरी कहानी : बड़ो का कहा मानो
महाराष्ट्र से लगे इस छोटे शहर मै रीति रिवाज,त्योहार ,बोल-चाल में मराठी संस्कृति का बड़ा प्रभाव दिखता था।पुराने बड़े से घर की कुछ दूरी पर में दादा जी के चार-पांच खेत थे जिनमें अधिया से चावल उगाया जाता था।जब पोला त्योहार आता तो बैल को सजा कर घर में लाते और दादी उसकी पूजा करतीं।इसी तरह जन्माष्टमी पर्व पर सब लोग अपने घरों में मिट्टी के कृष्ण भगवान रखते और दूसरे दिन शाम को सामने के तालाब में सिराने जाते थे। उस दिन घर के सामने मंदिर और तालाब के आसपास बड़ा मैदान में मेला लग जाता ।फुग्गे ,खिलौने बेचने वाले आते।घर के दरवाजे से सब बैठकर इसका आनंद लेते।मुन्ना पापा से खिलौना खरीदने कहने लगा तो