राजकुँवर की चिट्ठी पहुँचने के क्रम में उनके मित्र ऐय्यार तेज़ सिंह सारे विघ्न बाधाओं को पार करते विजयगढ़ के राजमहल में दाख़िल हो जाते हैं। रूप बदलकर सबको चकमा देने में कामयाब तेज़ सिंह को आख़िरकार राजकुमारी की सहेली ऐय्यार चपला पहचान जाती है। हालचाल और मस्ती मज़ाक़ के बाद चपला विस्तार से क्रूर सिंह की गतिविधियों से अवगत कराती है। चन्द्रकांता के प्रण के आगे तेज़ सिंह प्रतिज्ञा करते हैं कि वे शिघ्रातिशीघ्र किसी भी क़ीमत पर राजकुँवर विरेंद्र और राजकुमारी चन्द्रकांता की भेंट कराएँगे।
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